आईवीएफ
IVF (इंट्रा-विट्रो फर्टिलाइजेशन) एक लैब तकनीक है। कोई कपल इसका उपयोग तब करता है, जब एक महिला को नैचुरल तरीके से प्रेग्नेंसी में समस्या होती है। इसमें तकनीक की मदद से शुक्राणु और अंडे को टेस्ट ट्यूब में मिलाकर शिशु के विकास की प्रक्रिया को शुरू किया जाता है। दुनियाभर में आईवीएफ प्रक्रिया का प्रयोग करके लाखों दंपत्ति संतान सुख प्राप्त कर चुके हैं। समय के साथ-साथ इसमें नए अविष्कार हो रहे हैं। इससे सफलता की दर भी तेजी बढ़ती जा रही है। इस पेज पर आप आईवीएफ से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां ही प्राप्त करेंगे। इसमें आपको आईवीएफ की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानने को मिलेगा। साथ ही, आईवीएफ की सफलता की दर, इस पर आने वाला खर्चा और जोखिमों के बारे में भी पढ़ेंगे। इसके अलावा, आईवीएफ के दौरान महिलाओं को कौन-सी सावधानियां बरतनी चाहिए और इसके क्या नुकसान हो सकते हैं, इन सभी के बारे में भी विस्तार से जानने को मिलेगा।
- आईवीएफ की प्रक्रिया- इसमें शुक्राणु और अंडे को एक लैब डिश में फ्यूज किया जाता है। इसके बाद निषेचन की प्रक्रिया पूरी होती है। फिर 3-5 दिनों के भीतर, निषेचित अंडे भ्रूण में विकसित हो जाते हैं।
- आईवीएफ की सफलता की दर- इसके सफलता की दर अंडे और शुक्राणु की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
- आईवीएफ का खर्चा- इसका खर्चा सभी आईवीएफ सेंटर में अलग-अलग हो सकता है।
- आईवीएफ के जोखिम कारक- आईवीएफ एक सुरक्षित बांझपन उपचार प्रक्रिया है। लेकिन इस दौरान कुछ महिलाओं को सूजन, उल्टी, स्ट्रेस, पीसीओएस, वजन बढ़ना जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं।