आजकल जिस तरह से नए मां-बाप बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, उसे देखते हुए मेंटल हेल्थ के बारे में जागरूकता बहुत जरूरी हो गई है। आंकड़ों के अनुसार 2007 से 2016 के बीच 75,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की है। इन दस सालों में छात्रों में आत्महत्या के मामले 52% तक बढ़ गए। दुनियाभर में टीनएज बच्चों यानी किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य चिंता का विषय बना हुआ है। दुनिया के सभी देशों को इस बारे में चिंता करनी चाहिए और समाधान खोजना चाहिए।
डिप्रेशन चुपचाप आता है और हमारे बच्चों को घेर लेता है। ज्यादातर मां-बाप को इस बात का पता भी नहीं चलता है कि उनके बच्चे डिप्रेशन में जी रहे हैं। 2012 की लैंसेंट रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 साल से 29 साल के बच्चों में आत्महत्या की दर दुनियाभर में सबसे ज्यादा है।
न्यूरोसाइंस वैज्ञानिकों ने टीनएज बच्चों में डिप्रेशन को लेकर कई शोध किए हैं और कई मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज की है, जिनके कारण बच्चों में डिप्रेशन होता है। इनके आधार पर ही जानें बच्चों में डिप्रेशन से लड़ने के लिए मां-बाप कैसे सपोर्ट कर सकते हैं।
बात करें...सपोर्ट करें...समझें
बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं, उन्हें प्यार, देखभाल और सपोर्ट की जरूरत तो होती ही है। मैंने कोचिंग क्लासेज लेने के दौरान महसूस किया कि आजकल के मां-बाप को लगता है कि वो बच्चों के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं। 2016 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन परिवारों में थोड़ा पारंपरिक माहौल है, उनके बच्चों में डिप्रेशन के मामले बिल्कुल कम पाए गए हैं। न्यूरोसाइंटिस्ट Ron Dahl ने कहा है, मां-बाप को बच्चों से सवाल जरूर करें मगर उन्हें उनसे सहानुभूति रखनी चाहिए। इसके अलावा अभिभावकों को सही-गलत की तुलना करने के बजाय बच्चों की बातों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अगर बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन दिख रहा है, तो मां-बाप उसे डांटने, चिल्लाने के बजाय प्यार से पेश आएं।
इसे भी पढ़ें: बच्चों पर कभी न डालें ये 5 दबाव, हाइपर पैरेंटिंग से होते हैं डिप्रेशन के शिकार
एक्सपर्ट की मदद लें
अगर मां-बाप बच्चों में डिप्रेशन जैसे लक्षण देखते हैं, तो उन्हें एक्सपर्ट की मदद लेनी चाहिए। मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के गाइडेंस और सपोर्ट से बच्चों को सही दिशा दी जा सकती है। चूंकि बच्चों की पढ़ाई, नौकरी आदि में सफलता के लिए मेंटल हेल्थ का अच्छा होना जरूरी है, इसलिए मां-बाप को फिजिकल हेल्थ के साथ-साथ इमोशनल हेल्थ या मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान देना चाहिए।
परवरिश का मतलब है सही व्यवहार सिखाना
मां-बाप के लिए जरूरी है कि वो बच्चों में इमोशनल और सोशल स्किल्स बढ़ाएं और उन्हें इस तरह तैयार करें कि वे प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सकें। दोस्ती, प्यार, पढ़ाई की टेंशन, रिजल्ट का तनाव, निराशा आदि ऐसे मामले हैं, जहां बच्चे खुद को नहीं संभाल पाते हैं। आमतौर पर बच्चे इन चीजों का सामना उस समय करते हैं, जब उनका बचपन जा रहा होता है और युवापन आ रहा होता है। इसके अलावा इस उम्र में बच्चे भावुक भी बहुत ज्यादा होते हैं। इसलिए मां-बाप को बच्चों के हर मामले में जजमेंटल नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके नजरिये से स्थितियों को समझना चाहिए।
इस बारे में कई अध्ययन भी किए गए हैं कि बच्चे डिप्रेशन और तनाव से कैसे लड़ सकते हैं। Christine Carter के अनुसार बच्चों को इमोशनल कोचिंग देकर उन्हें स्ट्रेस से लड़ना सिखाया जा सकता है। इसके अलावा मां-बाप को बच्चों से बात करते समय बहुत कड़क या गंभीर बने रहने की जरूरत नहीं है, उन्हें शांत और नर्म होना चाहिए। इससे बच्चे गलत आदतों का शिकार नहीं होते हैं।
इसे भी पढ़ें: बच्चे हो जाएं डिप्रेशन का शिकार तो अपनाएं पीसीआईटी थैरेपी, जानें क्या है
बच्चों को जीवन का उद्देश्य तय करने में मदद करें
बिना किसी तय उद्देश्य के जीवन में खुश और संतुष्ट रहना मुश्किल है। टीनएज में आमतौर पर बच्चे अच्छे कॉलेज में एडमिशन के लिए, स्पोर्ट्स टीम में पार्टिसिपेट करने के लिए या कुछ अन्य उद्देश्यों के साथ जीते हैं। ये सब छोटे-छोटे उद्देश्य हैं। इस उम्र तक उनके जीवन का एक लक्ष्य भी तय होना चाहिए। इसके लिए मां-बाप बच्चों की मदद कर सकते हैं। उनसे पूछें कि उन्हें क्या पसंद है या वे भविष्य में क्या करना चाहते हैं। अगर बच्चे इस बारे में क्लियर नहीं हैं, तो उन्हें बताएं। इस तरह धीरे-धीरे बच्चों के लिए अपने जीवन का उद्देश्य तय करना आसान हो जाएगा।
Read more articles on Children's Health in Hindi